नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: |
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: || 2.23||
न एनम् छिन्दन्ति शस्त्राणि... इस आत्मा में शस्त्र छेद नहीं कर सकते या काट नहीं सकते।
न एनम् दहति पावकः ... इसको आग जला नहीं सकती है।
न च एनम् क्लेदयंति आप: ... ...इसे जल गला नहीं सकता है।
न शोषयति मारुत: ... वायु इसे सुखा नहीं सकता है।
आत्मा की विशेषता बताते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस आत्मा को शस्त्र काट या छेद नहीं सकता।इसको अग्नि जला नहीं सकती, जल इसे गला नहीं सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकता।
अर्जुन को यह चिंता है कि सगे संबंधियों और वीरों की हत्या का निमित्त बनकर मैं पाप का भागी क्यों बनूं? इस शंका का समाधान करते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा शरीर से बहुत ऊपर की चीज है। शस्त्रों में वह सामर्थ्य नहीं है कि इसे काट या छेद सकें। शरीर जिन तत्वों से बना है उनकी ओर संकेत करते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे आत्मा का कुछ बिगाड़ नहीं सकते।
शस्त्र पृथ्वी तत्व है,यह काट नहीं सकता।अग्नि तत्व इसे जला नहीं सकता,जल तत्व गला नहीं सकता और वायु तत्व सुखा नहीं सकता यानी पृथ्वी अग्नि, जल और वायु में वह सामर्थ्य नहीं है कि आत्मा को नष्ट कर सके।यहां आकाश का नाम नहीं लिया गया है क्योंकि ये चारों तत्व आकाश से ही उत्पन्न होते हैं पर वे अपने कारणभूत आकाश को किसी तरह की क्षति नहीं पहुंचा सकते।जब यह आकाश को ही कोई क्षति नहीं पहुंचा सकते तो अदृश्य आत्मा तक कैसे पहुंच सकते हैं? देह के कट जाने पर भी देही नहीं कटता, देह के जल जाने पर भी देही नहीं जलता, देह के गल जाने पर भी देही नहीं गलता। देह के मर जाने पर भी देही नहीं मरता,बल्कि इससे निर्लिप्त रहता है। अतः हे अर्जुन! इस संबंध में शोक करना तुम्हारी नासमझी है, अज्ञान है। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को यह बताना चाहते हैं कि पृथ्वी,जल, अग्नि और वायु से भी बलशाली आत्मा तुम्हारे पास है।आत्मा की विलक्षणता को समझो।तुम आत्मा के स्तर पर सोच ही नहीं पा रहे हो, बस शारीरिक ढांचा देख रहे हो। शरीर का कटना, जलना, गलना और सूखना संभव है, किंतु आत्मा इन सबसे परे है।